संत रविदास, कबीर साहेब जीवन परिचय

इस पोस्ट के माध्यम से आईये जानते हैं संत रविदास, कबीर साहेब जीवन परिचय के बारे में |

आज यानि 27 फ़रवरी को संत रविदास की जयंती मनाने का दिन है | 

हिन्दू शास्त्र और पंचाग ये निर्देशित करते हैं की माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास की जयंती मने |

आपको बता दे की संत रविदास एक महान संत थे और इनका नाम भारत के गिने चुने सर्वश्रेष्ठ संतो में आता है |

वैसे तो भारत के लगभग सभी संत दयालु और भारतीय संस्कृति को लेकर चलने वाले होते हैं लेकिन संत रविदास का ह्रदय बहुत ही सरल था | 

उन्होंने अपने जीवन में पवित्रता और संस्कृति पर जोर दिया साथ ही बाह्य और दिखावे वाले आडम्बरो को करने से अपने आप को बचाए रखा | 

इस कारण से उनके ह्रदय की पवित्रता बनी रही और लोगो के बीच उनका सम्मान भी बढ़ता गया | 

Sant Ravidas Aur Kabir Das Jivan Parichay

संत रविदास जी के अनमोल वचन 

जब कभी भी आम जन और जीवन जीने की सरलता की बात समूह में आती है तो संत रविदास के दोहे जरुर से कहे जाते हैं की "मन चंगा तो कठोती में गंगा" | 

इसका सीधा सा अर्थ ये है की अगर लोग अपने मन को साफ़ और सरल रखे तो गंगा के तट पर जाने की जरुरत नहीं है | 

इस लोकोक्ति के ऊपर भी एक कहावत है की एक बार एक जगह पर रविदास जी अपना काम करने में व्यस्त थे तभी एक महिला ने उन्हें नहाने की सलाह दे डाली, उसी समय संत रविदास जी के मुखं से ये शब्द निकला और देखते ही देखते प्रचलित हो गया |

संत रविदास जी का इतिहास 

रविदास हमारे भारत वर्ष के एक महान संत के अलावा 15वीं शताब्दी के दर्शनशास्त्री, समाज सुधारक और कवि भी थे| इनका संप्रदाय निर्गुण था | 

इस समय जो हम गुरु रविदास की वर्षगाठ मना रहे हैं वो उनकी 644वीं वर्षगाठ है | 

संत रविदास का जन्म आज के उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ था | इनके पिता जी और माता जी का नाम क्रमशः श्रीसंतोख दास जी और कलसा देवी था |

संत रविदास जी की जयंती को बड़े धूम धाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है और मंदिरों में गीत संगीत के साथ ही उनके दोहे भी गाये जाते हैं | 

उनके जन्म दिवस पर कई जगहों पर पूजा अर्चना भी की जाती है | चुकी उनका जन्म बनारस में हुआ था इसलिए बनारस के लोग इसे एक ख़ास पर्व के रूप में भी मनाते हैं और उनके आदर्शो को जन जन तक पहुँचाने का काम करते हैं |

संत रविदास जी की कथा कहानी 

संत रविदास का जीवन बहुत ही सरल था | उनके पिता जी जूते बनाने का काम किया करते थे और संत रविदास जी ने भी ये काम किया और अपने पैत्रिक व्यवसाय को पुरे उत्साह के साथ अपनाया और किया भी | 

वे इतने दयालु थे की किसी भी साधू संत को बिना जूते या चप्पल के देख लेते थे तो बिना एक भी पैसा लिए उन्हें जूते दे दिया करते थे | ऐसा कहा जाता है की साधू संतो के प्रति उनका झुकाव बहुत ही ज्यादा था |

संत रविदास जी के अध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब थे, बाद में कबीर साहेब के कहने पर ही उन्होंने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु मान लिया | 

इनके गुरु स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत में गिने जाते थे | 

आपको ये जानकर हैरानी होगी की रविदास जी के लिखे हुये पद सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी देखने को मिलते हैं, जिनकी संख्या करीब चालीस है |

रविदास जी की मृत्यु कब हुई

संत रविदास की मृत्यु 1540 AD में बनारस में हुई थी |

कबीर साहब का जीवन परिचय 

कबीर साहेब का जन्म सन 1398 के आसपास हुआ था और इनकी जन्म स्थली लहरतारा ताल, काशी थी | इनकी मृत्यु 1518 में मगहर, उत्तरप्रदेश में हुई थी | 

कबीर साहब हिंदी के भक्ति काल के एक ऐसे कवी थे जिन्होंने समाज की कुरीतियों पर कुठाराघात किया और आडम्बरो को दरकिनार करने का हर संभव प्रयास किया और उसमे सफल भी हुये | 

कबीर के माता पिता का नाम नीरू और नीमा था और उनके संतान का नाम कमाल और कमाली थे | उनकी कर्म भूमि काशी रही और वे एक समाज सुधारक कवि के रूप में प्रसिद्ध हुयें | 

उनकी प्रमुख रचनाये साखी, सबद और रमैनी थी | कबीर साहेब के प्रवचन, दोहे, आरती समाज में रह रहे लोगो को नई उर्जा और आत्मबल दिया करते थे |

इस पोस्ट के माध्यम से संत रविदास और उनके गुरु कबीर साहेब के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने की कोशिश की है और साथ ही रविदास के गुरु कबीरसाहेब के बारे में भी विस्तृत जानकारी मिली होगी | अगर इस पोस्ट से आपको कुछ जानकारी मिली हो तो सब्सक्राइब करे |

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